Complete Story Of Ahalya – आखिर क्यों बनी अहिल्या पत्थर की ?

Complete Story Of Ahalya, भारतीय पौराणिक कथाओं में अनेक महान् महिलाएं हैं जिन्होंने अपनी साहसिकता, धैर्य और अद्भुतता के लिए प्रसिद्धी पाई है। इनमें से एक महान् महिला थी अहिल्या, जिसकी कहानी अत्यंत प्रेरणादायक है। अहिल्या की कथा पुराणों में वर्णित है, जिसमें उनके पति गौतम ऋषि के श्राप के कारण वे पत्थर बन जाती हैं। चलिए, हम अहिल्या की इस रोचक कहानी को विस्तार से जानते हैं:

बहुत समय पहले की बात है, महर्षि गौतम तपस्या के लिए अपनी पत्नी अहिल्या के साथ काश्यप ऋषि के आश्रम में निवास कर रहे थे। गौतम ऋषि ध्यान और तपस्या के निरन्तर पुरस्कार में खोये हुए थे और उनकी आदर्श पत्नी अहिल्या ने उनकी सेवा में अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया। वह सदैव प्रियतमा की भूमि पर चलने वाली और व्रतों, पूजाओं और यज्ञों में प्रतिष्ठित रहने वाली थीं।

Complete Story Of Ahalya

अहिल्या की कहानी : परिवर्तन और समर्पण की एक कथा – ahilya pathar ki kaise bani

एक दिन, गौतम ऋषि अपने आदर्श व्रत के बाद अहिल्या के पास गए और उनसे कहा, “अहिल्ये! मुझे तेरे लिए एक महान कार्य करना है।” गौतम ऋषि की आवाज़ में अद्भुत शक्ति थी, और अहिल्या जानती थी कि गौतम ऋषि के वचन पर आंखें बंद करके भरोसा करना उचित होगा।

गौतम ऋषि ने जारी रखा, “अहिल्ये, तुम्हें वरदान माँगने का समय आ गया है। कृपया वरदान मांगो, और मैं तुम्हारी इच्छा पूरी करने के लिए तैयार हूं।”

अहिल्या की आंखें खुल गईं और वे थोड़ी देर सोचने के बाद बोलीं, “हे गुरुदेव! मुझे बहुत सरल वरदान मांगना है। कृपया मेरी बायाँ आंख को देखने की शक्ति दें।”

गौतम ऋषि ने अहिल्या की आंखों पर अपने हाथ रखे और उन्हें आशीर्वाद दिया। जैसे ही उनके हाथ अहिल्या की आंखों से स्पर्श करते हैं, वे चमक उठीं और उनकी आंखें पूरी तरह स्वस्थ हो गईं।

अहिल्या अपने नए दर्शनों के साथ खुशी से गौतम ऋषि की ओर देखती हैं, लेकिन उनकी प्रकृति में अपनी सम्मानित स्थिति को बरकरार रखने की ख्व

ाहिश होती है। अहिल्या अपने गुरुदेव को प्रणाम करती हैं और कहती हैं, “गुरुदेव, मैं आपके आदेशों का पालन करने के लिए तैयार हूं। कृपया मुझे बताएं कि कैसे मैं आपका आश्रय बनाएं रख सकती हूं।”

ahilya kaun thi

गौतम ऋषि को अहिल्या की समर्पण भावना और सेवा के प्रति गर्व महसूस होता है। उन्होंने आह्वान किया, “अहिल्ये, मैं अपने ध्यान और तपस्या में इतने खोए रहते हूं कि मेरे प्रतिष्ठान और आश्रम की सेवा मुझसे अधिक तुम्हारे द्वारा की जा सकती है। तुम इस आश्रम की राजमार्ग की रक्षा करोगी और यहां प्रवेश करने वाले सभी यात्रियों की सेवा करोगी।”

अहिल्या गौतम ऋषि के आदेश का पालन करने के लिए उठ खड़ी होती हैं और अपनी नई दासी स्थिति में स्वीकार करती हैं। उन्होंने आदेशों के अनुसार आश्रम की सुरक्षा बढ़ाने के लिए विभिन्न सुरक्षा उपकरणों को स्थापित किया और सभी प्रवेश करने वाले यात्रियों की आतिथ्य सेवा करने में लग गईं।

अहिल्या पत्थर कैसे बनी

अहिल्या अपनी सेवा और समर्पण के लिए प्रसिद्ध होती हैं और विभिन्न ऋषि-मुनियों की सेवा के लिए आश्रम में आत्मनिर्भर होती हैं। उनकी प्रशंसा देश-विदेश में फैल जाती है और अहिल्या अपनी नीति और न्यायप्रियता के लिए प्रसिद्ध हो जाती हैं।

एक दिन, अहिल्या को आश्रम में एक सूर्यास्त के दौरान एक युवक आकर्षित करता है। यह युवक राजा आदिशेष के पुत्र और बहुत ही सुंदर और चारित्रवान होता है। उसका नाम मल्लिकार्जुन होता है। मल्लिकार्जुन के दर्शन से पहले अहिल्या अपनी जीवन शैली और उच्च आदर्शों के साथ संतुष्ट थीं। लेकिन मल्लिकार्जुन के साथ विचारशक्ति और प्रेम उनके मन में उठने लगते हैं।

अहिल्या खुद को मानती हैं कि यह भावनाएं उचित नहीं हैं, लेकिन उन्होंने एक विचारशक्ति और प्रेम से भरी आंखों से मल्लिकार्जुन को देखा है और इसके बाद उनका दिल उनपर सदा के लिए आदेशित हो गया है।

यह जानते हुए कि यह संबंध धार्मिक और सामरिक दृष्टि सेअनुचित है, अहिल्या बहुत ही दुखी होती हैं। उन्होंने अपने मन की बात गौतम ऋषि को संज्ञा में रखते हुए बताई। गौतम ऋषि, जो धर्म, तप, और न्याय के प्रतीक थे, ने अहिल्या की अपार संवेदनशीलता को समझा और उन्हें दिया गया न्यायपूर्ण फैसला स्वीकार करते हैं।

Complete Story Of Ahalya

गौतम ऋषि ने कहा, “अहिल्ये, तुम्हारा अहंकार, संतान, और समाज की मान्यता को ध्यान में रखते हुए मैं तुम्हारी व्रतों को दूसरी सीमा में रखता हूं। तुम एक पत्थर के रूप में परिणत हो जाओगी, और तब तक इस धरती पर किसी भी इंसान से संपर्क के अभाव में रहोगी।”

अहिल्या पर कविता

गौतम ऋषि की यह फैसला सुनकर अहिल्या भयभीत हो जाती हैं, लेकिन वह जानती हैं कि इसका मतलब है कि उन्हें अपने प्रिय मल्लिकार्जुन से विचलित होना होगा।

उन्होंने अपनी प्रार्थना के साथ मन की स्थिति को स्थापित किया, जिसमें उन्होंने उन्हें अपने प्रियतम पति के अनुकरण के लिए प्रार्थना की। उन्होंने गौतम ऋषि की अद्भुत आज्ञा को मान्यता से स्वीकार किया और पर्वतों के समान दृढ़ व्रत की संकल्पना की।

और अगले क्षण, अहिल्या पत्थर बन जाती हैं। उन्हें इस तथ्य का ज्ञान होता है कि वह अब अपने आश्रम के बाहर निर्दिष्ट बंदिशों के बीच रहेंगी और किसी भी इंसान से संपर्क नहीं कर सकेगी।

अहिल्या का यह परिवर्तन आदिशेष के पास तुरंत फैल जाता है और उन्हें उसकी बात का ज्ञान होता है। उन्होंने अहिल्या की मदद करने के लिए स्वयं को त्यागने का फैसला किया है। अहिल्या और आदिशेष मिलकर विचारशक्ति और साहस के उदाहरण से विश्व को प्रेरित करते हैं।

इसके बाद, अहिल्या पत्थर के रूप में विराजमान होती हैं, और उन्हें आत्मसमर्पण और प्रतिष्ठा के भाव से बहुत अधिक महत्व दिया जाता है। अहिल्या के रूप में उन्हें जिंदगी के सभी पहलुओं से निवृत्ति होती है, और वह पवित्रता और भक्ति के प्रतीक के रूप में समझी जाती है।

अहिल्या के बारे में उसके पति और राजा आदिशेष को सभी का ज्ञान होता है और वह विचारशक्ति, प्रेम, और प्रतिष्ठा के साथ उनके साथ बंधे होते हैं। यह उनके साथी का त्याग और समर्पण के प्रतीक होता है, जो विचारशक्ति और शक्ति के प्रतीक के रूप में विश्व को प्रेरित करता है।

अहिल्या क्यों बनी पत्थर

आदिशेष के अद्भुत कर्मों के बाद, अहिल्या का दौरा समाप्त होता है और उन्हें उसकी पुनर्जीविता मिलती है। गौतम ऋषि और आदिशेष के आदेशों के परिणामस्वरूप, अहिल्या पुनर्जीवित हो जाती हैं और पत्थर से मुक्त हो जाती हैं।

अहिल्या अपनी पुनर्जीवितता के बाद, अपनी नई जीवन की शुरुआत करती हैं। वह फिर से अपने पति गौतम ऋषि के साथ जीवन व्यतीत करने के लिए प्रतिबद्ध होती हैं और धर्म और न्याय के लिए अपना समर्पण देती हैं।

अहिल्या की कहानी हमें ध्यान देती है कि धर्म, न्याय, त्याग, और समर्पण की शक्ति हमेशा प्रमुख होती हैं। अहिल्या एक महान महिला की उत्कृष्टता को दर्शाती हैं, जो अपने धर्म के प्रति पक्की होती हैं और न्याय को संरक्षण देने के लिए समर्पित होती हैं। उनकी उपास्यता हमें प्रेरित करती है कि हमें अपने धर्म और मूल्यों के प्रति सदैव समर्पित रहना चाहिए, चाहे जीवन के किसी भी परिस्थिति में हो।

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